Pages

Tuesday 6 December 2016

यात्रा का अगला पड़ाव देहरादून


इस यात्रा को आरम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे.........  


इस फोटो को खास पीछे तेज रफ़्तार से जाते एक ट्रक ने बनाया। (मेरे दाए तरफ राजू और बाये तरफ आशीष) 


रात के 1 बज गए थे। ओर देर किये अब हम घर से निकल पड़े। मैं अपनी बाइक चला रहा था और मेरे पीछे जावेद बैठा था। उधर राजू बाइक चला रहा था और उसकी पिछली सीट पर आशीष बैठा था। मोदीनगर पहुँचते ही ठण्ड लगने लगी। आमतौर पर अक्टूबर में ठण्ड नहीं होती पर एक तो मोदीनगर ग्रामीण क्षेत्र है, ग्रामीण क्षेत्र में खेतो और अधिक पेड-पौधे  होने की वजह से शहर की अपेक्षा तापमान कम ही होता है और दूसरा रात के 1:30  बजे हुए थे। ये दोनों ही ठण्ड लगने के मुख्य कारण थे। एक जगह बाइक रोक कर हम सबने जैकेट पहन ली और फिर चल दिए। जैसे ही मेरठ बाईपास पहुँचे पुलिस वाले तलाशी ले रहे  थे। आमतौर पर ये तलाशी अभियान  रात को बड़े वाहनों और खासकर ट्रक वालो के लिए होती है। आपको हर 20-30 किलोमीटर पर चेकिंग मिलेगी। पर पता नहीं हम कैसे इसके चपेट में आ गए। जैसे ही पुलिस वाले ने बोला कि बाइक साइड में रोको और पेपर दिखाओ,  तुरंत याद आया, अबे यार ! बार-बार चलने और ना चलने के चक्कर में प्रदुषण और इन्सोरेंस कराना तो भूल ही गया। अब इन्हें भी भुगतना पड़ेगा ये सोचते हुए जो भी जैसे भी पेपर थे उन्हें दे दिए। पहले आर सी  देखी, लाइसेंस देखा फिर प्रदुषण और इन्सोरेंस। खैर अच्छी बात ये रही कि रात में अँधेरे की वजह से, ना तो वो प्रदुषण की अंतिम तारीख ठीक से देख पाए और ना ही इन्सोरेन्स की और सब ओके कहते हुए हमे जाने दिया। मुझे तसल्ली हुई चलो बिना पैसे दिए बच गए। अब हम यहाँ से निकल गए। खतौली पहुँचकर 5 मिनट के लिए रुके और फिर चल दिए। जैसे-जैसे हम आगे जाते जा रहे थे, वैसे-वैसे ठण्ड ओर ज्यादा लग रही थी। मुज़्ज़फरनगर की सिमा जब ख़त्म होने वाली थी तो हमने एक जगह रुक कर चाय पी और 30 मिनट आराम करने के बाद यहाँ से चल दिये। रात के समय, जहाँ तक बाइक की लाइट पड़ती है, सिर्फ वही तक आप देख पाते हो उसके आगे का कुछ भी नहीं दिखता और ऊपर से ट्रक वाले पूरी सड़क घेर कर चलते है। "दुर्घटना से देर भली" इसलिए हम 50 की रफ़्तार से ही चलते रहे। रुड़की में पहुँचते ही जबजस्त कोहरा मिला। फिर तो हैलमेट में से कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। और बिना देखे तो बाइक नहीं चला सकता था।  इसलिए आगे देखने के लिए मुझे हैलमेट का शीशा ऊपर करना पड़ा। कोहरे और सर्दी से परेशानी तो हो रही थी, पर मजा भी आ रहा था। आमतौर पर दिल्ली, गाज़ियाबाद में तो इस महीने में गर्मी ही रहती है। इसलिए यहाँ की सर्द हवा परेशान कम, आनंद ज्यादा दे रही थी। और मुझे कोहरे में बाइक चलाने में बहुत मजा आता है। घने कोहरे की वजह से आगे का कुछ नहीं दिखाई देता, इसलिए ऐसे में बाइक चलना मेरे लिए किसी अपुर्व अनुभव से कम नही होता है।  जिसका मैं पूरा मजा लेता हूँ। लेकिन मैं आपको ऐसे अनुभव ना लेने की सलाह दूंगा। यह बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है।


यहाँ हमने रात को चाय पी थी।  और यह फोटो मोबाइल एप के द्वारा  एडिट किया गया है। 

6 बजे हम रूड़की पहुँच गए। अब सबने यही घुटने टेक दिए। हालांकि मेरे हिसाब से हमे अब तक देहरादून होना चाहिए था। इसलिए मैं यहाँ रुकना नहीं चाहता था। पर बाकि तीनो कहने लगे की यही कुछ घंटे आराम करेंगे फिर चलेंगे। मैं उनकी बात मानते हुए, होटल में कमरे की बात करने चला गया। उसने कमरे के 600 रुपए बोला मैंने उसको 300 लेकिन उसने इनते में मना कर दिया। बात 450 में पक्की हुई। वैसे भी 4 लोगो का 450 इससे सस्ता भी और क्या मिलेगा। हमारे बीच कुछ ऐसा तय हुआ कि हम कुछ देर यही आराम करेंगे और 10 बजे यहाँ से निकल जायेंगे। कमरा हमने बस 3-4 घण्टे के लिए लिया था। कुछ देर आराम करने से शरीर फिर से तरो ताजा हो गया। जिसको जहा जगह दिखाई दी, वो वही फैल गया। सबने 2 घंटे की नींद ली, पर अधिक उत्सुकता के कारण मुझे ठीक से नींद नहीं आयी और मैं सबसे पहले उठ गया। कुछ देर बाद, सब उठ गए। 2 घंटे सोने से पूरी रात की थकान तो नहीं उतरी। लेकिन खुद को पहले से तरो-ताजा महसूस किया।

फटाफट तैयार हुए और फिर यहाँ से निकल गए। समय 10 का हो गया था। भूख भी लग रही थी। पास में ही एक होटल पर रुके और चाय के साथ प्याज के पराठे खाये। अब जाकर आत्मा तृप्त हुई। यहाँ से निकलकर सबसे पहले बाइक का इन्सोरेंस और प्रदूषण कराना है। क़्योंकि कल रात बिना कागजो के बहुत परेशानी झेलनी पड़ी थी। जहाँ-जहाँ पुलिस वाले दिखते वही ऊपर की सास ऊपर और नीचे की सास नीचे रह जाती थी। अभी तो यात्रा शुरू ही की है और अगले 3-4 दिन घूमना ही है। कही पुलिस वाले बाइक के पेपर चेक ना कर ले, इस डर  के साथ घूमने का मजा किरकिरा हो जायेगा। इसलिए सबसे पहले, इस काम को निपटाना है तभी आगे चलेंगे। थोड़ा ही आगे चले थे कि याद आया, अरे आज तो रविवार है। और सभी कंपनियो की छुट्टी। इसका मतलब आज इन्सोरेंस नहीं होगा। फिर भी मैंने प्रदूषण करा लिया। सोचा यदि पुलिस वालो ने पकड़ भी लिया तो इन्सोरेंस ना होने का ही चालान होगा, प्रदूषण पर तो बच ही जायेगा। इससे मुझे कुछ तो राहत मिलेगी। यह काम करके हम आगे चल दिये। अब तक हम देहरादून के काफी नज़दीक पहुँच गये। देहरादून जाने के लिए कुछ पहाड़ो को जरूर लाँघना पड़ता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि यहाँ से ही हमे पहाड़ो का रास्ता मिलना शुरू हो जायेगा। कुछ पहाड़ सिर्फ देहरादून पहुँचने से पहले मिलते है, पर देहरादून समतल पर ही बसा हुआ है। पहले पहाड़, फिर समतल और फिर पहाड़ और इन पहाड़ो के बिच की समतल जगह पर ही है देहरादून। पहाड़ आने शुरू हो गए, ये देख कर हम भी खुश हुए जा रहे थे। इस बीच पहाड़ो पर एक मंदिर आता है, नाम शायद माँकाली मंदिर है।   हमारा इरादा था कि पहले मंदिर में जाकर प्रसाद चढ़ायेंगे, फिर आगे बढ़ेंगे। पर जैसे ही हम मंदिर के पास पहुँचे, यहाँ जाम को देखकर, हालत और हालात दोनों ही बदल गए। फिर बिना दर्शन के आगे बढ़ने का इरादा बनाया।

1 बजे के आसपास हम देहरादून पहुँच गए। मेरे हिसाब से यह दून घाटी में स्थित है।  इसलिए इसका नाम देहरादून पड़ा। इसका इतिहास बहुत ही पुराना है। यहाँ बहुत तेज धुप निकल रही थी। जिससे बहुत गर्मी लग रही थी। यहाँ बिना समय बर्बाद किये हम गुच्चुपानी देखने को निकल गए। इसे रोबर केव के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन आस्चर्य की बात यह है कि यहाँ के स्थानीय लोगो से यदि आप रोबर केव के नाम से इसका पता पूछोगे तो आपको "यहाँ ऐसी कोई जगह नहीं है' जैसा उत्तर ही सुनने को मिलेगा। और आप गुच्चुपानी का नाम लोगे, तो वो ही आपको अच्छे से इसका पता पता देगा। यह थोड़ा हैरान करने वाली बात है कि यहाँ के अधिकतर लोग इसको केवल गुच्चुपानी के नाम से ही जानते है। आपको 10 में से कोई 1 ही ऐसा मिलेगा जो रोबर केव के नाम से इसे जानता होगा। हमारे साथ भी कुछ ऐसा हुआ। हमने जिससे भी रोबर केव के बारे में पूछा वो पहले 2 मिनट सोचता, फिर नहीं पता बोलकर आगे निकल जाता। पर हमे इसका दूसरा नाम यानी गुच्चुपानी भी पता था। फिर हमने इस नाम से पूछा तो हमे इसका पता बताया गया। लेकिन जिस से भी इसका पता पूछा वो पहले थोड़ा मुस्कराता और फिर बोलता कि अच्छा आपको गुच्चुपानी जाना है। और उसके बाद रास्ता बताता। हम सबका इसकी तरफ ध्यान जाना लाज़मी था। हम जिससे भी पूछते उन सभी के चेहरे का हाव-भाव ऐसा ही था, पहले मुस्कराना और फिर पता बताना। एक बार तो हुआ कि इनसे पूछ ही लू की भाई जी ऐसा क्या पूछ लिया हमने, जो आप मुस्करा रहे हो। गुच्चुपानी पहुँच कर शायद खुद पता चल जाये, यही सोचकर मैंने उनसे कुछ नहीं कहा और पता जानकर आगे बढ़ गए।






गुच्चुपानी के पास पार्किंग 





इस यात्रा का अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे...... 

2 comments: