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Friday 16 December 2016

गुच्चुपानी की सैर, देहरादून

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देहरादून 


कुछ देर में हम गुच्चुपानी पहुँच गए। गुच्चुपानी दरअसल पहाड़ो के बीच बनी एक प्राकर्तिक गुफा है। इसकी लम्बाई लगभग 500-550 मीटर होगी। ये पहाड़ दो भागो में बटा हुआ है। और इसके अंदर से छोटे झरने के रूप में पानी बाहर निकलता है।


Tuesday 6 December 2016

यात्रा का अगला पड़ाव देहरादून


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इस फोटो को खास पीछे तेज रफ़्तार से जाते एक ट्रक ने बनाया। (मेरे दाए तरफ राजू और बाये तरफ आशीष) 

Thursday 24 November 2016

मेरी पहली बाइक यात्रा

दिनाँक  8 अक्टूबर 2016 ...


मैंने इस यात्रा की शुरुवात छुट्टियों को मद्देनज़र रखते हुए की। ऑफिस में बैठे हुए देखा कि 9 तारीख का रविवार है और 11 का दशहरा। लेकिन 10 तारीख को कोई छुट्टी नहीं थी, पर एक दिन की  छुट्टी तो ली भी जा सकती है। इन सब बातो को ध्यान में रखते हुए मैंने योजना बनायी की बाइक से देहरादून, मसूरी , धनोल्टी, चम्बा, टिहरी और  ऋषिकेश की यात्रा की जाये। ऑफिस के ही एक दोस्त जिसका नाम आशीष है, उससे पूछा कि बाइक से कही घूमने चलोगे क्या? उसको बताया 9 और 11 छुट्टी है बाकि 10 की हम ले लेंगे। इससे ज्यादा छुट्टियों का सदुपयोग और भला क्या हो सकता है कि एक दिन की  छुट्टी लेने पर अपने पास टोटल 3 दिन है। आशीष ने चलने के लिए तो हां कर दी। पर वो अब मुझसे आगे कुछ बोल पाता इससे पहले ही उसकी सवालो से भरी निगाहों को पढते हुए मैंने ही अपनी बनायीं हुई योजना के बारे में उसको बताना शुरू किया। मैंने बताया कि हम देहरादून होते हुए मसूरी जायेंगे और वही रात रुकेंगे फिर अगली सुबह मसूरी से धनोल्टी के लिए निकलेंगे, यहाँ कुछ समय रुकने के बाद टिहरी झील देखेगे और उससे अगले दिन ऋषिकेश होते हुए वापिस घर। वाकई में इस यात्रा पर बहुत मजा आने वाला था, क्योकि हम जिस रस्ते से जायेंगे उस रस्ते से वापस नहीं आयेंगे। यानी जाने का रास्ता अलग और आने का रास्ता भी अलग। जाहिर है, ऐसे घूमने में सभी को मजा आता होगा। जिसमे किसी भी रस्ते को दोबारा दोहराना ना पड़े। मुझे तो ऐसे बहुत मजा आता है।

Monday 7 November 2016

महताब बाग़ और फतेहपुर सीकरी, आगरा

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यहाँ से होते हुए हम नगीना मस्जिद जा पहुँचे। यह सन 1635 में केवल वहॉ की स्त्रियो के लिये बनायीं गयी थी। इसके तीन तरफ आंगन है। इसके चारो तरफ की दीवारे यहाँ पर पर्दो का काम करती है। इसके अंदर जानना बाजार था, जिसमे केवल महिलाये दुकाने लगाया करती थी। यह मस्जिद शाहजहाँ की निजी मस्जिदों में सबसे सुन्दर है। सूरज ढल चूका था और हल्का-हल्का अंधेरा होने लगा था। अब वापस चलने की बारी थी। यहाँ से बाहर निकालकर हम चटपटी रसोई गये और खाना खाया। और फिर सीधा होटल। थोड़ी देर बैठकर हम दोनों ने पुरे दिन जो देखा उस पर अपना-अपना नजरिया व्यक्त किया। ताजमहल, ताज नैचुरल पार्क और किले की तारीफ करते-करते समय 9 का हो चला। अब हमे नींद आने लगी थी। पूरा दिन घूमते हुए थक भी गए थे। अरुण ने रस्ते में कई बार मुझसे ये कहाँ कि इतना तो मैं पिछले 1 साल में नहीं चला, जितना आज चला हूँ। मैंने उसको बोला नहीं पर मेरी हालत भी कुछ ऐसी ही थी! दरअसल हम दोनों की ही बाबू वाली नौकरी है। जिसमे घर से बाइक पर ऑफिस, ऑफिस में बैठे रहना और छुट्टी होने पर फिर बाइक से घर। हमारी रोजमरा के जीवन में कोई भी शारारिक गधिविधि ऐसी नहीं है जिससे फिट रह सके। तो इस हिसाब से आज जितना पैदल चले वो सच में हमारे लिए तो बड़ी बात है।  मैंने ए.सी. चलाया और लेट गये। बात करते हुए कब नींद आ गयी पता भी नहीं चला।  

Saturday 5 November 2016

आगरा नैचुरल पार्क और किला, आगरा


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ताज से निकलते ही मैंने अरुण को बोला की कुछ खा लेते है, दोपहर के 12 बज गए थे तब तक। फिर हमने कुछ चिप्स और कोल्ड ड्रिंक ले ली। और खाते हुए ताज पार्क, जो ताज से थोड़ी दूरी पर ही है की ओर चल दिये। यह सामान्य  पार्क की तरह ही है इसके रास्ते थोड़े उचे-नीचे  बनाये गए है जैसे कि जंगलो के रास्ते होते है। इसमें जाने का भी टिकेट लगता है। जब हम यहाँ पहुँचे तो दोपहर हो चूँकि थी।  और धूप निकल रही थी। जिससे काफी गर्मी हो गयी। पार्क के अंदर जाते ही हमे धूप और गर्मी दोनों से छुटकारा मिला। यहाँ काफी तताद में पेड़ और पौधे है। सामान्यता ऐसे पार्को पर आज-कल अस्थाई रूप से प्रेमी जोड़ो का कब्ज़ा रहता है। पार्को की वर्तमान में ये ही छवी है। जो हमे भी देखने को मिली। पर हमे कोई फर्क नहीं पड़ा, हमारी मस्ती की नाव तो अलग ही चाल में चल रही थी। हमने पहले थोड़ी देर वही आराम किया। पर यहाँ भी कुछ खा नहीं सकते थे। क्योकि यहाँ भी खाने के सामान पर रोक थी। लेकिन थोड़ा अंदर एक कैंटीन भी बना रखी थी। अब इसे सफाई अभियान से जोड़ो या व्यसाय के रूप में देखो, यह कहना थोड़ा मुश्किल है। आराम को अब विराम लगाकर हम पार्क में अंदर चल दिए। एक उचे मिट्टी के टीले से हमे ताज के  फिर दीदार हुए। 

आगरा में आपका स्वागत है

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आगरा पहुँचते-पहुँचते शाम के 4 बज चुके थे। और भूख भी लग रही थी। इसलिए अपने रूम मे जाते ही, सबसे पहले हमने होटल से ही खाना आर्डर किया। खाना महँगा था, पर मेरा बिल्कुल भी मन नहीं था बाहर जा के खाना खाने का। तो होटल में ही मैंने दाल मखनी और रोटी आर्डर कर दी। चूँकि अब पेट पूरी तरह भर चूका था, तो नींद आनी लाज़मी थी। और दोनों की सलाह हुई ओर नतीजा निकला कि थोड़ी देर आराम करके, शाम को होटल के आस पास ही घूमने को निकल जायेंगे और ताज महल कल सुबह-सुबह देखेंगे, उस समय गर्मी भी कम रहेगी तो घूमने मे मजा आएगा। कुछ समय तक हमने होटल में ही आराम किया। 

Friday 4 November 2016

श्री बांकेबिहारीजी के दर्शन, मथुरा

यात्रा आरम्भ  
13  अगस्त 2016 (शनिवार)... 

बहुत दिन हो गए थे घर से निकले हुए। जिसकी वजह से मुझे काफी बोरियत हो रही थी। और बोरियत हो भी क्यों ना, मुझे कही घूमे हुए कुछ दिन या महीने नहीं बल्कि साल हो गए थे। तो मन करता था कि कही भाग जाऊ कुछ दिनों के लिए। इस रोज रोज की नौकरी से दिमाग मानो  पूरी तरह चलने को हो गया था। खैर एक दिन बैठे बैठे योजना बनायी कि क्यों ना आगरा के दौरे पर निकला जाए। इस महीने पहले ही मेरी काफी छूट्टी हो गयी थी। तो फिर से मुझे ज्यादा छूट्टी मिलने से तो रही। इसलिए ही आगरा ही ठीक था। पास भी और ज्यादा से ज्यादा 2-3 दिन ही लंगेगे पुरे आगरा को निहारने में। उसी दिन मेरे फुफरे भाई (अरुण) का फ़ोन आ गया। बातो बातो मे मैंने उसको अपने घूमने के बारे में बताया तो वो भी फ़ौरन बोला की भाई मैं भी साथ चल सकता हूँ क्या? यदि तुझे कोई दिक्कत न हो तो। मैंने कहा मुझे कोई परेशानी नहीं है। तुम भी चलो।