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Friday 4 November 2016

श्री बांकेबिहारीजी के दर्शन, मथुरा

यात्रा आरम्भ  
13  अगस्त 2016 (शनिवार)... 

बहुत दिन हो गए थे घर से निकले हुए। जिसकी वजह से मुझे काफी बोरियत हो रही थी। और बोरियत हो भी क्यों ना, मुझे कही घूमे हुए कुछ दिन या महीने नहीं बल्कि साल हो गए थे। तो मन करता था कि कही भाग जाऊ कुछ दिनों के लिए। इस रोज रोज की नौकरी से दिमाग मानो  पूरी तरह चलने को हो गया था। खैर एक दिन बैठे बैठे योजना बनायी कि क्यों ना आगरा के दौरे पर निकला जाए। इस महीने पहले ही मेरी काफी छूट्टी हो गयी थी। तो फिर से मुझे ज्यादा छूट्टी मिलने से तो रही। इसलिए ही आगरा ही ठीक था। पास भी और ज्यादा से ज्यादा 2-3 दिन ही लंगेगे पुरे आगरा को निहारने में। उसी दिन मेरे फुफरे भाई (अरुण) का फ़ोन आ गया। बातो बातो मे मैंने उसको अपने घूमने के बारे में बताया तो वो भी फ़ौरन बोला की भाई मैं भी साथ चल सकता हूँ क्या? यदि तुझे कोई दिक्कत न हो तो। मैंने कहा मुझे कोई परेशानी नहीं है। तुम भी चलो। 

अब जाने की सारी जिम्मेदारी मेरी ही थी। जैसे कार, होटल बुक करने की। अरुण ने तो पहले ही हाथ उठा दिए, कि जो तैयारी करनी है, तुझे ही करनी है। तो इस बोझ को अपने कंधो पर लेते हुए मैंने सबसे पहले गाडी की तरफ रुख किया और एक कार वाले से बात की। बात पक्की हो गयी। मैं भी खुश हुआ की चलो कम से कम एक काम तो पूरा हुआ। फिर एक काम बचा होटल बुक करने का और आज तारीख है 12 अगस्त यानी कल हमे निकलना है। खोज की इंटरनेट पर तो जल्द ही  मेरी ये खोज भी पूरी हुई। और मैंने आगरा के ताज हेरिटेज नाम के  होटल में कमरा बुक कर लिया। तब तक शाम हो गयी। घर गया और अपने कपडे बैग मे लगाने लगा। पता नहीं ये आदत अच्छी है या बुरी, पर मैं अपनी पैकिंग खुद ही करता हूँ। बैग पैक करके मैं अगले दिन चलने को तैयार था। 

इतनी ख़ुशी थी कि अगले दिन मैं 5 बजे ही उठ गया। और फटा फट तैयार हो गया। इतने 6 बज गए थे। अब मैंने गाडी वाले को फ़ोन किया, जिसका नाम है भोला। भोला ने कहा की थोड़ा समय लगेगा मैं 7 बजे तक पहुँच पाउँगा। तो मैंने कहा ठीक है। मैं तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ जल्दी आ। जैसे की भोला ने कहा था, वो 7 बजे पहुँच गया। और मैं अपने आगरा के दौरे पर निकल पड़ा। अरुण मुझे लालकुआँ, ग़ाज़ियाबाद पर मिलेगा जो हमारे बीच पहले से तय था। इसलिए मैंने घर से निकलते ही उसको फ़ोन कर दिया ताकि मुझे लालकुआं पहुँचकर उसका इंतज़ार ना करना पड़े। जैसे ही मैं  वहाँ पहुँचा अरुण पहले से ही मेरा  इंतज़ार कर रहा था। 

सफर शुरू होते ही हमारे जीवन का ऐसा दौर शुरू हुआ, जिसमे सिर्फ मैं ही मैं हूँ, ना कोई बॉस, ना कोई नौकरी, ना कोई घर सिर्फ मैं। इसलिए मन ही मन मैं बहुत खुश भी हो रहा था। हमने पहले ही तय कर लिया था, कि नोएडा होते हुए यमुना एक्सप्रेसवे से आगरा जायेंगे। इसलिए भोला को भी हमने बता दिया था। ओर कुछ बताने की जरुरत ही नहीं है भोला को, क्योकि वो ड्राइवर जो ठहराउसको हमसे ज्यादा रास्तो के बारे में पता है। जैसे ही हम लालकुआं से चले तो नोएडा तक कही-कही यातायात व्यस्त मिला, उसको पार करने में थोडा वक्त जरूर लगा। लेकिन हम सुबह जल्दी निकले थे, इसलिए हमे जितनी अपेक्षा थी, यातायात उससे कम ही मिला। और जैसे ही 9 बजेंगे, नोएडा का ट्रैफिक रेंग-रेंग के चलेगा और ये कोई नयी बात नहीं है। यहाँ तो ये रोजमरा की बात है। अच्छा हुआ हम पहले ही जाम से निकल गए, अब परेशानी की कोई बात नहीं बची। रास्ते में चलते हुए हमने योजना में थोड़ा बदलाव किया। अब मथुरा में पहले श्रीबांकेबिहारीजी के दर्शन करेंगे तब फिर आगरा जायेंगे। क्योकि हमारे पास आज काफी समय था, हमे आज सिर्फ आगरा तक पहुँचकर आराम करना था। घूमना कल से शुरू करना है। इसलिए इस बदलाव से हमारे  द्वारा बनाई गयी नयी योजना पर कोई फर्क नहीं पड़ा। ये बात अरुण ने भोला को भी बता दी कि पहले श्रीबांकेबिहारीजी के दर्शन के लिए चलना फिर आगरा। भोला को इस बात से कोई परेशानी नहीं थी। उसको तो सिर्फ गाड़ी चलाने से मतलब था। जैसे ही नोएडा से हमारी कार यमुना एक्सप्रेसवे पर पहुँची, कार की रफ़्तार भी 40 किलोमीटर से बढ़कर सीधा 100 किलोमीटर पर जा पहुँची। अब गाडी हवा से बाते कर रही थी, ओर मैं तो पहले से ही हवा मे था, जाने की इतनी ख़ुशी जो थी।  


                    
                                                            
यमुना एक्सप्रेसवे लगभग 160-170 किलोमीटर लम्बा और 6 लेन का है।  ये ग्रेटर नोएडा से आगरा तक है। और ट्रैफिक होते हुए भी यह इतना खली रहता है कि 100 किलोमीटर की रफ़्तार पर गाड़ी आराम से चलाई जा सकती है।  लेकिन इससे ज्यादा तेजी से चलना अच्छी बात नहीं है।  ऐसे में दुर्घटना होने की आकंशा बनी रहती है।  इतना खाली और सड़क अच्छी होने की वजह से अधिकतर लोग गाडी ज्यादा तेज चलाते है, जिसकी वजह से इस रोड पर दुर्घटना भी बहुत ज्यादा होती है। आगरा तक इस पर 3 टोल पॉइंट पड़ते है। जल्द ही हम पहले टोल पॉइंट पर पॅहुच गए। जो ग्रेटर नोएडा से लगभग 37 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। यहाँ पर बहुत भीड़ थी। एक तो 2 दिन की छुट्टी (14 अगस्त को रविवार और 15 अगस्त को स्वतन्त्रा दिवस ), दूसरा आगे जाने वाले सभी लोग यही से टोल पर्ची कटवाते है।  क्योकि ये पहला टोल पॉइंट पड़ता है , पैसे देने और पर्ची कटवाने में कुछ समय तो लगेगा ही। पर इतना पक्का पता था कि हमे आगे आने वाले दोनों टोल पर भीड़ बिल्क़ुल नहीं मिलने वाली। क्योकि वहाँ किसी को टोल पर्ची नहीं कटवानी, सिर्फ पहले टोल से कटवाई हुई पर्ची दिखाते हुए आगे बढ़ते जाना है। जिसमे अपेक्षाकृत ज्यादा समय नहीं लगेगा। यहाँ मैंने भोला को पैसे दिए और उससे बोला कि आगरा तक की पर्ची कटवा लो। फिर अचानक भोला को क्या सूजी, वो बोला नहीं सर आगरा का मत लो, आपको पहले श्रीबांकेबिहारी जी के दर्शन करके तब आगे जाना है, इसलिए ...... । पहले तो मैंने उसकी बात धैर्य के साथ सुनी, फिर मैं बोला कि यदि हम सीधा आगरा तक की पर्ची लेते है, तब फिर हम श्रीबांकेबिहारी जी के दर्शन करते हुए आगे निकल सकते है। और यदि ऐसा नहीं करते तो फिर अगले टोल पॉइंट पर फिर से पर्ची कटवानी पड़ेगी। जो सिर्फ वक़्त की बर्बादी है ओर कुछ नहीं। मेरी बात उसको समझ आ गयी और उसने आगरा तक की पर्ची कटवा ली। लेकिन भीड़ होने की कारण पहले ही टोल पर हमे 15-20 मिनट लग गए। अपने अमूल्य समय को अब और बर्बाद किये बिना, हम श्रीबांकेबिहारी जी के दर्शन के लिए चल दिए। ठीक से तो याद नहीं पर अब तक लगभग 11-12 के समय हो गया था और हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। कुछ समय बात हम एक्सप्रेसवे को छोड़कर श्रीबांकेबिहारी जी के मंदिर की तरफ चल दिए। यहाँ की बात करे तो यहाँ श्रद्धालुओ की भीड़ और तंग रास्तो की वजह से हमेशा ही जाम की स्थिति बनी रहती है। यहाँ के स्थानीय लोगो ने अपनी खाली जमीनों और प्लोटो में पार्किंग की सुविधा अपने और हमारे लिए दी हुई है। हमारी सुविधा तो ये ही है कि कार की रखवाली होती रहती है और इसके बदले में हमसे पैसे लेकर वो अपना जीवन व्यापन करते है। इसको एक तरह से व्यासाय ही कहाँ जायेगा। जाम को भेदते हुए हम आगे बढ़ते गए। और उन तंग गलियो में से निकलते हुए, हमने एक पार्किंग में अपनी कार खड़ी कर दी। उससे आगे कार से जाना संभव नहीं था। मंदिर में बेल्ट, वॉलेट लेकर नहीं जाना चाहिए, क्योकि ये पशुओ की खाल से तैयार की जाती है।  इसलिए हमने वॉलेट और बेल्ट निकालकर कार में ही रख दिए और पैदल ही मंदिर की ओर चल दिए। तब तक बारिश भी रुक गयी थी। मंदिर पहुँचकर हमने प्रसाद लिया और श्रीबांकेबिहारी जी के दर्शन किये। दर्शन करके ऐसा लगा मानो, मेरी इन आँखों को अब और कुछ देखने की इच्छा ना रही हो। मैंने ईश्वर से कुछ नहीं माँगा , जैसा अधिकांश हम लोग मंदिर में जाकर करते है, कि हे भगवन मेरा ये काम बना दो, अगेरा-वैगरा। मैं तो अपनी आँखे भी बंद नहीं कर पाया। क्योकि उनकी सुंदरता ऐसी थी कि मेरा नज़र हटाने का मन ही नहीं किया। मंदिर के अंदर फोटो लेने की अनुमति नहीं है। वरना यहाँ आपको भी जरूर दिखता। भीड़ की वजह से मैं और अरुण अलग-अलग हो गए थे। लेकिन जाने से पहले अरुण बोला कि यदि हम अंदर अलग हो जाते है तो हम दोनों में से जो भी पहले बाहर आएगा, वो गेट न. 2 पर दूसरे के पहुँचने का इंतज़ार करेगा। मैं दर्शन करके पहले बाहर आ गया। अरुण तब तक नहीं आया था, तो जैसा की हमे दोनों ने अंदर जाने से पहले तय किया था। मैं गेट न. 2 पर उसके आने का इंतज़ार करने लगा। 10 मिनट बाद अरुण आता दिखाई दिया। उसके आते ही हम दोनों पार्किंग की तरफ चल दिए। और हां अभी तो हमे पेड़े (एक तरह के मिठाई) लेने थे। मथुरा के पेड़े बहुत की मशहूर है। हम बात करते हुए आगे पहुँच गए। काफी आगे जाकर याद आया पर जब तक सही दुकाने पीछे छूट चुकी थी। और वापिस जाने का फिर मन नहीं हुआ। इसलिए बिना पेड़े लिए ही वहाँ से चल दिए। पार्किंग पहुँचकर,सबसे पहले पानी पिया और फिर आगरा के ओर चल दिए।    
अभी तक दोपहर के 2 बज चुके थे। कुछ देर में हम फिर से एक्सप्रेसवे पर आ गए। अभी 1 घंटे का सफर ओर तय करना है, अब हम बोर भी हो रहे थे। तो अरुण बोला कि भोला भाई कुछ गाने-आने ही सुना दो, गाने सुनकर ये बोरियत तो दूर होगी। पहले तो भोला अरुण की तरफ देखकर मुस्कराया, फिर उसने बिना देर किये अपनी पेन ड्राइव लगा दी। गाने शुरू हुए, मुझे पिने का शोक नहीं , पीता हु गम भुलाने को....., वफ़ा ना रास आयी, तुझे ओ हरजाई...। अरुण ने तुरंत रिमोट उठाया और गाने बदल-बदलकर देखने लगा। पर भोला भी किसी से कम कोई है, जहा तक अरुण ने गाने ढूंढे, वही तक ऐसे ही गाने मिले। तभी हमे अहसास हुआ कि असल में बोरियत तो अब हुई है। गाने सुनने से पहले तक तो हम सामान्य थे, पर अब नहीं। वही अरुण शायद अपने आप को कोस रहा होगा कि मैंने क्यों भोला से गाने चलाने को बोला। मैंने गाने गाने की रफ़्तार वही रोक दी। वैसे भी आगरा पहुँचने में अब ज्यादा समय नहीं था। आगरा में प्रवेश करते ही बारिश ने फिर से हमारा जोरदार स्वागत किया। बारिश की वजह से थोड़ा जाम जरूर मिला पर जल्द ही हम होटल पॅहुच गए।  
  
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